गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 23/12/201723/12/2017 ग़ज़ल जाने वाले लौट आ कि तबियत उदास है कोई गीत गुनगुना कि तबियत उदास है काटने को दौड़ते हैं रेशमी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 21/12/201722/12/2017 गज़ल मुसाफिर रहे ता-उम्र ना घर हमने बनाया मंज़िल तुझे, तुझे ही सफर हमने बनाया शोहरत अता की अपने बेपनाह इश्क Read More
धर्म-संस्कृति-अध्यात्म *भरत मल्होत्रा 19/12/2017 मौन मौन शब्द की संधि विच्छेद की जाय तो म+उ+न होता है। म = मन, उ = उत्कृष्ट और न = Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 19/12/201712/01/2018 गज़ल कुछ पता ही ना चला कैसे, कहां, किधर गई चार दिन की ज़िंदगी ना जाने कब गुज़र गई एक-एक करके Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 15/12/201712/01/2018 गज़ल ना चाँद सजाया माथे पर ना दामन भरा सितारों से जज़्बा-ए-इश्क लिए दिल में हम खेले हैं अंगारों से रंग Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/12/201714/12/2017 ग़ज़ल लेकर तेरी यादों से इज़ाज़त कभी-कभी, कर लेता है ये दिल भी इबादत कभी-कभी मिटा के अपनी हस्ती को कतरा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 01/12/201702/12/2017 गज़ल जिसकी मौत पर अफसोस कायनात करे वो शख्स फिर किसलिए गम-ए-हयात करे जीते जी यहां कुछ ऐसे काम कर जाओ Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 01/12/2017 लेख मानव के भीतर अपार क्षमता है। मुश्किल यही है कि हम अपनी क्षमताओं से अनभिज्ञ हैं। हमें ज्ञात ही नहीं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 27/11/201712/01/2018 गज़ल बिखर के बीज की तरह चमन के काम आए मिल के खाक में अपने वतन के काम आए रात भर Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 23/11/201726/11/2017 गज़ल बात से बात चले तो ये स्याह रात कटे चाँद कुछ और ढले तो ये स्याह रात कटे सोए हुए Read More