सामाजिक *भरत मल्होत्रा 22/11/2017 लेख सीखना एक जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। हम इस संसार में एक कोरे कागज़ की भाँति आते हैं। पहले Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 22/11/201726/11/2017 गज़ल बुजुर्गों की तेरे हाथों से ना तौहीन हो जाए तेरी बातों से कोई दोस्त ना गमगीन हो जाए मिल जाए Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 20/11/201726/11/2017 गज़ल दिलफरेब सी ये शाम-ओ-सहर फिर मिले ना मिले तेरी नज़रों से मेरी दीदा-ए-तर फिर मिले ना मिले आए ही गए Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 17/11/201726/11/2017 गज़ल कभी हम फूल होते हैं, कभी हम खार होते हैं कभी लाठी बुढ़ापे की, कभी तलवार होते हैं आईने की Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/11/201726/11/2017 गज़ल लोग कहते हैं बहुत मगरूर होता जा रहा हूँ, जैसे-जैसे थोड़ा मैं मशहूर होता जा रहा हूँ वक्त ने मुझको Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/11/201726/11/2017 गज़ल ये माना कि शब का अँधेरा घना था, मगर राह में हमको रूकना मना था धुँधले थे कुछ आसमां में Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/11/2017 गज़ल खाक होने दे बदन ये धूप में, साया ना कर, हाल मेरा पूछकर वक्त अपना तू ज़ाया ना कर, ============================= Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/11/201726/11/2017 गज़ल एक बुलबुला फानी है, चंद साँसों की रवानी है कभी यहां तो कभी कहां, जीवन बहता पानी है दिन हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 06/11/201709/11/2017 गज़ल कुछ तो अच्छी आदत रखिए, थोड़ी-बहुत नज़ाकत रखिए गैर भी अपने हो जाएँगे, दिल में बस रफाकत रखिए झूठ के Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 28/10/2017 गज़ल कभी लड़खड़ाते, कभी गिरते-पड़ते, कहां आ गए हम यूँ ही चलते-चलते, ======================= चलो लौट चलते हैं फिर बचपने में, कहा Read More