गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 05/07/2017 गज़ल ये ज़िंदगी बेमकसद सा इक सफर निकला, जिसे समझा था आदमी वो पत्थर निकला, मैं करता भी अगर किससे शिकायत Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 01/07/201717/07/2017 गज़ल गिरगिट जैसे नेताओं का रंग बदलना जारी है, भोले-भाले लोगों को मिलजुलकर ठगना जारी है सपने रोज़ दिखाते हैं वो Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 21/06/201721/06/2017 गज़ल दर्द तेरे दिल में जगा सकता हूँ पर रहने दे, तुझको दीवाना बना सकता हूँ पर रहने दे, नामुमकिन नहीं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/06/2017 गज़ल चाँद माथे पे, निगाहों में सितारे लेकर, रात आई है देखो कैसे नज़ारे लेकर, सुबह तक याद ना करने की Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 12/06/2017 गज़ल कुछ भी तो नहीं बदला ना शाम ना सहर में, सबकुछ वही है लेकिन रौनक नहीं शहर में, बना दिया Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 09/06/201701/07/2017 गज़ल नज़ाकत आप क्या जानें, नफासत आप क्या जानें, किसी मासूम चेहरे की शरारत आप क्या जानें जज़्बे हैं ये इंसानी, Read More
कविता *भरत मल्होत्रा 05/06/2017 पर्यावरण वातानुकूलित कमरे में बैठे-बैठे बोतलबंद पानी का घूँट भरकर उसने कहा यार बोरियत हो रही है चलो एक-एक सिगरेट जलाएँ Read More
धर्म-संस्कृति-अध्यात्म *भरत मल्होत्रा 01/06/2017 लेख प्रसन्न रहना कुछ खास कठिन कार्य नहीं है बस हमने स्वयं ही उसे कठिन बना रखा है। आनंद हमारा मूल Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 01/06/2017 गज़ल जब पुकारा आईने में दिख रहे इंसान को, यूँ लगा कि मिल रहा हूँ मैं किसी अंजान को, अश्क उसकी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 30/05/2017 गज़ल राह में मील का पत्थर नहीं मिलता, मुद्दतों से कोई रहबर नहीं मिलता, यूँ तो मिलते हैं काफी लोग रोज़ाना, Read More