कविता *भरत मल्होत्रा 27/04/2017 कविता छुपा हुआ है एक दुशासन, शायद मेरे मन में भी, सत्य तो और भी थे लेकिन, मैंने कड़वा ही सत्य Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 21/04/2017 गज़ल दीवानों की दुनिया की ये कैसी रवायत है, उनसे ही मुहब्बत है उनसे ही शिकायत है, दोनों सूरतों में चैन Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 20/04/2017 गज़ल भरोसा था तुझे पहले रहा वो अब नहीं शायद, तेरी उम्मीद पर मैं ही खरा उतरा नहीं शायद, तेरे एहसास Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 18/04/201719/04/2017 गज़ल कब दीवारों से झाँकता है कोई, मुझको शायद मुगालता है कोई, मुड़ के देखा हवा का झोंका था, लगा ऐसे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/04/201717/04/2017 गज़ल कभी फुर्सत हो तो सुनना छोटी सी कहानी है, अश्कों से लिखी है और निगाहों से सुनानी है गम क्या Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 13/04/2017 गज़ल खुद से वो शर्मिंदा निकला, चलो कोई तो जिंदा निकला, ================== अजनबी जैसा लगता था पर, बस्ती का बाशिंदा निकला, Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 11/04/2017 गज़ल बहुत से लोग दुनिया में अजब सा काम करते हैं, मुहब्बत ज़िंदगी से है मगर जीने से डरते हैं, ============================== Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 09/04/201709/04/2017 नियम जीवन नियमों से चलता है। ये पूरी सृष्टि नियमबद्ध है। कुछ भी नियम के प्रतिकूल नहीं होता। मानव को ये Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 09/04/2017 ग़ज़ल जो मेरे सीने में धड़कन की तरह बसता रहा, मैं उसे ही मिलने को ता-उम्र तरसता रहा, धूप में जलती Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 27/03/2017 गज़ल जलूँगा कब तलक तनहा मैं शरारों की तरह, कभी उतरो मेरे आँगन में सितारों की तरह, मैं एकटक तुझे देखा Read More