गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 19/07/2016 ग़ज़ल ज़ख्मी जब भी ईमान होता है, सब्र का इम्तिहान होता है सच का साथी नहीं यहां कोई, मुखालिफ ये जहान Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 18/07/2016 ग़ज़ल किस्सा कब हो गया तमाम खबर ही ना हुई कितने रह गए अधूरे काम खबर ही ना हुई मैं रोज़मर्रा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/07/201616/07/2016 ग़ज़ल दुआ देने में यारों को बड़ी तकलीफ होती है, खुशी से गम के मारों को बड़ी तकलीफ होती है मिटा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 02/07/2016 ग़ज़ल रंग रूखसार का तेरे उड़ा-उड़ा क्यों है मेरे महबूब तू इतना डरा-डरा क्यों है ऐसा लगता है कि छूते ही Read More
गीत/नवगीत *भरत मल्होत्रा 01/07/2016 गीत देवों की धरती पर अब अट्टहास कर रहे दानव हैं अपना खून सफेद हो गया बस कहने को मानव हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 29/06/2016 ग़ज़ल बिछड़ के तुझसे मुझे ये शहर अच्छा नहीं लगता कहां सजदा करूँ कोई भी दर अच्छा नहीं लगता मैं जिसके Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 27/06/2016 ग़ज़ल हक में बेकसूरों के गवाही कौन पढ़ता है यहां चेहरों पे लिक्खी बेगुनाही कौन पढ़ता है यहाँ अखबार बिकते हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 27/06/2016 ग़ज़ल वक्त-ए-आखिर तुझमें मुझमें फर्क क्या रह जाएगा ना रहेगा कोई छोटा, ना बड़ा रह जाएगा काम आएँगी वहां बस अपनी-अपनी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 24/06/201624/06/2016 ग़ज़ल मेरे जिस्म में तू बन के जान रहता है, मिलूँ किसी से भी तेरा ध्यान रहता है मेरे वजूद में Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 24/06/2016 ग़ज़ल सुकून-ओ-चैन क्या पता किधर चले गए, अपनों की दुआओं से भी असर चले गए खुद फरिश्तों को भी नाज़ होता Read More