यशोदानंदन-१३
कंस एक क्रूर अधिनायक था। पर साथ ही चतुर और धूर्त राजनीतिज्ञ भी था। मथुरा का वह राजा बन ही
Read Moreकंस एक क्रूर अधिनायक था। पर साथ ही चतुर और धूर्त राजनीतिज्ञ भी था। मथुरा का वह राजा बन ही
Read Moreयोगमाया का प्रभाव समाप्त होते ही मातु यशोदा की निद्रा जाती रही। जैसे ही उनकी दृष्टि बगल में लेटे और
Read Moreकंस तो कंस था। वह पाषाण की तरह देवी देवकी की याचना सुनता रहा, पर तनिक भी प्रभावित नहीं हुआ।
Read Moreमेघ, दामिनी और चन्द्रमा – तीनों ने जगत्पिता के एक साथ दर्शन किए। अतृप्ति बढ़ती गई। तीनों पूर्ण वेग से
Read Moreशिशु कृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जी भरके अपने माता-पिता को देख लेना चाह रहे थे — पता नहीं
Read Moreकंस वापस अपने राजप्रासाद में आ तो गया परन्तु भगवान के प्रति शत्रुता के सागर में निमग्न वह बैठे-सोते, चलते-फिरते,
Read Moreअब वसुदेव को अपने शिशुओं को लेकर कंस के पास नहीं आना पड़ता था। शिशु के जन्म का समाचार पाते
Read Moreकंस बाल्यकाल से ही आततायी और आसुरी प्रवृत्ति का था। राजा उग्रसेन के अथक प्रयास के पश्चात भी उसके स्वभाव
Read More“महर्षि! श्रीकृष्ण का मथुरा में प्रवेश से लेकर कंस-वध का संपूर्ण वृतांत का आप अपने श्रीमुख से मुझे सुनाकर अनुगृहीत
Read Moreगर्गाचार्य के पास कोई विकल्प शेष नहीं रहा। उन्होंने समस्त उपस्थित जन समुदाय को
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