Author: बृज राज किशोर "राहगीर"

गीत/नवगीत

गीत – जिह्वा रूपी शमशीर 

सत्ता  पाने   का   अहंकार, सत्ता  खोने   की   पीर  बड़ी। दोनों ने  मिलकर  खींची है, रंजिश की एक लकीर बड़ी।। है एक पक्ष  जो  भारत को   अपनी  जागीर समझता है। सत्ता  को  सोने  की प्याली  में  रक्खी खीर समझता

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

अपने  अरमानों  की   मैयत  ढूँढ रहे हैं भैयाजी।  लुटी  हुई   बेनाम  सल्तनत, ढूँढ रहे हैं भैयाजी। जब प्रधानमंत्री को अपनी उंगली पर नचवाते थे, बिन ताक़त वाली

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