Author: डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

लघुकथा

झूठे मुखौटे

साथ-साथ खड़े दो लोगों ने आसपास किसी को न पाकर सालों  बाद अपने मुखौटे उतारे। दोनों एक-दूसरे के ‘दोस्त’ थे। उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया

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लघुकथा

मेरी याद

रोज़ की तरह ही वह बूढा व्यक्ति किताबों की दुकान पर आया, आज के सारे समाचार पत्र खरीदे और वहीँ

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लघुकथा

विरोध का सच

“अंग्रेजी नववर्ष नहीं मनेगा….देश का धर्म नहीं बदलेगा…” जुलूस पूरे जोश में था। देखते ही वह राष्ट्रभक्त समझ गया कि

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