Author: *डॉ. दीपक आचार्य

सामाजिक

ईमानदारी से स्वीकारें – हम ही हैं आवारा, लुच्चे-टुच्चे और लफंगे, आलतू-फालतू नाकारा नुगरे, और आतंकवादी

जरा सोचें कि भगवान द्वारा दी गई बुद्धि का हम कितना इस्तेमाल करते हैं। हम सारे भेड़ों की रेवड़ों या

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

सामूहिक उल्लास अभिव्यक्ति का सुनहरा उत्सव है – गोठ

उमड़ता है मौज-मस्ती और सामाजिक सौहार्द का मनोरम ज्वार             आनन्द पाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना मनुष्य का मौलिक स्वभाव

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

फागुनी लोक लहरियों पर थिरक रहा है दक्षिणांचल

            अमराइयों में कूकती कोयल ने बसन्त के आगमन का संदेश दिया, प्रकृति ने धानी चूनर ओढ़ी, खेतों में फूली पीली सरसों ने

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

पहाड़ों में लगते हैं कुँवारों के मेले, मिलता है जीवनसाथी का वरदान

राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात के आदिवासियों की साँस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं का मनोहारी दिग्दर्शन कराने वाले राजस्थान के दक्षिणांचल वाग्वर

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हास्य व्यंग्य

आज के सिद्ध महामंत्र – सर-सर सरासर, मैं-मैं मैम-मैडम

सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में चाहे कौनसे भी मंत्र तारक, उद्धारक और पालक रहे होंगे मगर इस कलियुग में दो-तीन ही

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पर्यावरण

पर्यावरण संरक्षण के लिए ईमानदार प्रयास जरूरी

विश्व में वर्तमान में व्याप्त सभी प्रकार की समस्याओं, संत्रासों, पीड़ाओं और अभावों का मूल कारण प्रकृति के प्रति हमारी

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मावजी साहित्य का वैश्विक प्रचार-प्रसार जरूरी

वाग्वर अंचल का लोक साहित्य, भक्ति साहित्य हो या लोक जीवन, परिवेश, जीवन और जगत से जुड़े किसी भी पहलू

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सामाजिक

विस्तार पा रहा है महिलाओं का मीडिया के प्रति रुझान

आधी दुनिया अब समाज-जीवन और परिवेश से लेकर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी क्षेत्रों में अपनी धाक जमाने लगी

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