ग़ज़ल
जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी आंख सबके है देखता नहीं है कोई भी कैसे महफ़ूज रहेगी ये
Read Moreइतना हसीं कहां मेरा पहले नसीब था तुमसे मिला नहीं था जब कितना गरीब था। मेरा जो हो के भी
Read Moreलिखावट संस्था की ओर से चर्चित कवि व ग़ज़लकार डी एम मिश्र के नये और पांचवें ग़ज़ल-संग्रह ‘लेकिन सवाल टेढ़ा
Read Moreऐसे क़ातिल से बचिए जो रक्षक भी होता है गुड़ में ज़हर मिलाने वाला वंचक भी होता है आंख बंद
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