ग़ज़ल – गमे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया
गमे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया समंदर में गहरे उतरना सिखाया अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन तेरी आरज़ू़ ने
Read Moreगमे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया समंदर में गहरे उतरना सिखाया अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन तेरी आरज़ू़ ने
Read Moreगरीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है सुकूँ चार पल को मिला ही नहीं है कहाँ ले के जाऊँ मैं
Read Moreतेरे प्यार में हर सितम है गवारा होता है होने दो नुक्सां हमारा अभी तक सफ़र में था बिल्कुल अकेला
Read Moreजिंदगी जितना तुझको पढ़ता हूँ उतना ही और मैं उलझता हूँ सारे आलम को यह ख़बर कर दो इश्क़ की
Read Moreदूर से आकर हमारा वो क़रीबी हो गया देखते ही देखते किस्मत हमारी हो गया कब मिला , कैसे मिला
Read Moreमेरा प्यार बेशक समंदर से भी है मगर गाँव के अपने पोखर से भी है किनारे जो लग करके डूबा
Read Moreमैं विवादों से दूर रहता हूँ काम से काम अपने रखता हूँ। घर में भींगा रुमाल रख आया आप से
Read Moreकैसे हो पार कश्ती घबरा के मर न जाऊँ तूफ़ान में घिरा हूँ ग़श खा के मर न जाऊँ। ख़ुद
Read Moreअपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता उड़ता हुआ बादल कभी राहत नहीं देता। फ़रमाइशें हैं शान में
Read Moreग़मे आशिकी ने सँभलना सिखाया समन्दर में गहरे उतरना सिखाया अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन तेरी आरज़ू
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