बबूल
नीरव पथ सुनसान फिजा में, एक अकेला मैं कुरूप बबूल। करते जाते मनचाही क्रिया, बागों वालों की है भूल। सड़क
Read Moreसृष्टि का रथ कालचक्र के अनुसार चल रहा है। सृष्टि के इस रथ को भला कौन है ऋजु-वक्र चला सकता
Read Moreहमारी सनातन आर्य संस्कृति में कोई भी परंपरा अतार्किक और अवैज्ञानिक नहीं है । परंपराओं के उद्भव के पीछे के
Read Moreजग प्रतिपल मूढ बना जाता। मैं हर पल कर्म समा जाता। सत पथ प्रण निभा जाता। फिर ! मैं उस
Read Moreचार दिना रो जोबनो, कोई ना करज्यो देर। पल दो पल का जीवणा, फेर दिना रे फेर। बलम जी !
Read Moreकवि मनु के दो कण आये, आज संशय की झोली में । दम तोड़ती कविता भरते, रिक्त ज्ञान की
Read Moreगरज उठा फिर ! सिंह आज कायर स्यार छिपा है माद गड़ी है आँँखें उल्लू की सरहद पर लोमड़ नाद
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