भीष्म-युद्धिष्ठिर संवाद
प्रणाम कुलशीर्ष पितामह! आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर। कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने…. या संशय के
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Read Moreखड़ा विचारों के धरातल अक्स देखता उनका अविचल मंद स्मित रेखा से परिवर्तन हो जाता आकार विस्तीर्ण। ढप जाता भूगोल
Read Moreआज संकुचित ज्ञान के घेरे में अवरुद्ध जीवन का विकास पड़ा है कुत्सित सोच के फेरे में! जीवन का
Read Moreबाजार के दर्शन की इच्छा उसी को रखनी चाहिए जिसके पास क्रय शक्ति और आवश्यकता में तालमेल बनाए रखने का
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Read Moreसृष्टि का रथ कालचक्र के अनुसार चल रहा है। सृष्टि के इस रथ को भला कौन है ऋजु-वक्र चला सकता
Read Moreहमारी सनातन आर्य संस्कृति में कोई भी परंपरा अतार्किक और अवैज्ञानिक नहीं है । परंपराओं के उद्भव के पीछे के
Read Moreजग प्रतिपल मूढ बना जाता। मैं हर पल कर्म समा जाता। सत पथ प्रण निभा जाता। फिर ! मैं उस
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