मेघा
अरावली के उत्तुंग शिखर, मेघा फिर-फिर आते है। बैठ पहाड़ी के कंधे पर, सावन का गीत सुनाते है। बंग खाड़ी
Read Moreहमारी सनातन आर्य संस्कृति में कोई भी परंपरा अतार्किक और अवैज्ञानिक नहीं है । परंपराओं के उद्भव के पीछे के
Read Moreजग प्रतिपल मूढ बना जाता। मैं हर पल कर्म समा जाता। सत पथ प्रण निभा जाता। फिर ! मैं उस
Read Moreचार दिना रो जोबनो, कोई ना करज्यो देर। पल दो पल का जीवणा, फेर दिना रे फेर। बलम जी !
Read Moreकवि मनु के दो कण आये, आज संशय की झोली में । दम तोड़ती कविता भरते, रिक्त ज्ञान की
Read Moreगरज उठा फिर ! सिंह आज कायर स्यार छिपा है माद गड़ी है आँँखें उल्लू की सरहद पर लोमड़ नाद
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