ग़ज़ल
कुछ मुहब्बत वफा की निशानी तो है। उसके चेहरे पे अब शादमानी तो है। तीरगी सब जहां की मिटानी तो
Read Moreलफ़्फ़ाज़ों के हम नहीं, बन सकते हमराज़। करना होगा अब हमें , एक नया आग़ाज़। गाता अपना गीत हूँ ,
Read Moreबदअमनी का हर तरफ,लगा हुआ अम्बार। घोड़े अपने बेच कर , सोता चौकी दार। समझाये कोई मुझे , मँहगाई का
Read Moreबाल न बांका हो कभी, टूटे ज़रा न आस। पालन हारे पर रखे , मानव जो विश्वास। झेलेंगे हमले नये
Read Moreलफ्फाज़ी होती रही , हुई तरक़्क़ी सर्द। समझ नहीं ये पा रहे , सत्ता के हमदर्द। अबलाओं पर ज़ुल्म कर,
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