चक्रव्यूह !
इस जिंदगी का क्या भरोसा कब शाम हो जाय , भरी दोपहरी में कब सूरज डूब जाय …. उम्मीद
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Read Moreउत्तर दो हे सारथि ! जीवन-संग्राम के मध्यस्थल में इस काया रथ में बैठकर ……, मेरा मन-अर्जुन पूछता है विवेक–सारथि
Read Moreक़ाज़ी भी है मजबूर , क़ातिल को बचाना है एक तरफ हक़ हैं , दूसरे हुज़ूरे आला है |
Read Moreपत्नी एक इंसान है , उसे देवी मत बनाइये पति भी हाड़-मांस का है, उसे देव न बनाइये | इंसान
Read Moreकुटिल काल-कर्कट ने कुतर कुतर काटकर हाड़-माँस के इस ढाँचे को बनाया खोखला काया को l एक खंडहर जर्जर घर,प्रकाम्पित
Read Moreप्रकृति की यह ध्वंस लीला ,और चलेगी कब तक ? चली आ रही है यह लीला ,आदि काल से आज
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