ग़ज़ल
शीतल ऋतु के नैन खुले, मौसम नैनों का नूर हुआ। जाग उठा जगती का कण-कण, क्षितिज सर्द सिंदूर हुआ। बाग-बाग
Read Moreघर घर दीप जले ज्योति-पर्व आया मनभावन घर-घर दीप जले। रजत हुआ रजनी का आँगन श्यामल गगन तले।
Read Moreकर सोलह शृंगार, सखी री दीप जला। पावन है त्यौहार, सखी री दीप जला। तम-विभावरी, झिलमिला रही, पूनम सी। ज्योतित
Read Moreउस रावण को भूलें अब, जो सदियों पहले खाक हुआ। समय कह रहा उसे जलाएँ अंतर में जो बसा हुआ।
Read Moreमेला है नवरात्रि का, फैला परम प्रकाश। आलोकित जीवन हुआ, कटा तमस का पाश। माँ प्रतिमा सँग घट सजे, चला
Read Moreभर्त्सना के भाव भर, कितनी भला कटुता लिखें? नर पिशाचों के लिए, हो काल वो रचना लिखें। नारियों का मान
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