व्यंग्य- चेलाराम चंटेश
एक वैवाहिक समारोह में एक नवयुवक मेरे पास आया.मुझे पहचानते हुए मुस्कुराया-सर, आप कवि कमलेश द्विवेदी है न? मैंने कहा-हाँ.यह
Read Moreएक वैवाहिक समारोह में एक नवयुवक मेरे पास आया.मुझे पहचानते हुए मुस्कुराया-सर, आप कवि कमलेश द्विवेदी है न? मैंने कहा-हाँ.यह
Read Moreपहले के जैसी फिर से शुरुआत कीजिए.आँखों ही आँखों मुझसे कुछ बात कीजिए. घंटों कहीं पे तन्हा फिर साथ बैठिए,फिर
Read Moreराम रमा कण-कण में है.सुमिरो वो सुमिरन में है. तुलसी जैसी भक्ति करो,मिलता वो चन्दन में है. शबरी जैसी चाहत
Read Moreजब मैंने पहले कवि सम्मेलन के बारे में लेख लिखा तो मन में यह विचार आया कि पहला कवयित्री सम्मेलन
Read Moreएक चित्र यादों की अलबम से कल निकला बाहर.उसने हमें दिखाये कितने भूले – बिसरे मंज़र. याद आ गया घंटों
Read Moreकोई पेड़ लगाता है फल दूजा कोई खाता है. उसको है मालूम मगर वो पेड़ लगाये जाता है. कितने पेड़
Read Moreकरके देखा गौर, कहाँ है?तुझ सा कोई और कहाँ है? क्या फल की उम्मीद करें हम,इन आमों में बौर कहाँ
Read Moreइस वर्ष कवि सम्मेलन का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है.पहला कवि सम्मेलन कानपुर में हुआ था.गूगल जानकारी के अनुसार
Read Moreकल एक कवि मित्र को फोन कियाउसने ढँग से रिस्पांस ही नहीं दियामैंने पूछा-क्या झगड़ा हो गया है किसी सेवो
Read Moreकानपुर के चर्चित हास्य-व्यंग्य कवि डॉ. कमलेश द्विवेदी ने कोरोना योद्धाओं को समर्पित एक गीत लिखा है-“हार ही जाएगा यह
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