कुछ ख्वाहिशें अबुझी सी……..
कुछ ख्वाहिशें अबुझी सी कस कर बंधी मुठ्ठी से फिसलती रेत- सी क्यूं हैं??? छलकने की भी इजाजत है नहीं
Read Moreकुछ ख्वाहिशें अबुझी सी कस कर बंधी मुठ्ठी से फिसलती रेत- सी क्यूं हैं??? छलकने की भी इजाजत है नहीं
Read Moreएक क्यारी सजाई है एहसासों की जिसमें चिर संचित पुण्य हैं जन्मों – जनम के….. एक माला पिरोई है गुनगुनाहट
Read Moreआओ ना एक बार, भींच लो मुझे उठ रही एक कसक अबूझ – सी रोम – रोम प्रतीक्षारत आकर मुक्त
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