मातृ देवो भव
माता की महिमा वेद, स्मृति, पुराण, इतिहास व अन्य ग्रन्थों में वर्णित है। शतपथ ब्राह्मण में माता, पिता और आचार्य के
Read Moreमाता की महिमा वेद, स्मृति, पुराण, इतिहास व अन्य ग्रन्थों में वर्णित है। शतपथ ब्राह्मण में माता, पिता और आचार्य के
Read Moreउवट, महीधर और सायणाचार्य आदि भाष्यकारों का विचार था कि वेद में वर्णित अग्नि, इन्द्र, वरुण, मित्र आदि कल्पित स्वर्ग
Read Moreवेद के अनेक मंत्रों में गोदुग्ध से शरीर को शुद्ध, बलिष्ठ और कान्तिमान् बनाने का वर्णन मिलता है। इससे सिद्ध
Read Moreक्षमाशीलता का अर्थ है निंदा, अपमान और हानि में अपराध करने वाले को दंड देने का भाव न रखना। संसार
Read Moreशतपथ ब्राह्ममण ने यजुर्वेद के एक मंत्र की व्याख्या में प्राण को अथर्वा बताया है। इस प्रकार प्राण विद्या या
Read Moreसंसार में मूर्ति पूजा का इतिहास ज्ञात करने पर पता चलता है कि जैन-बौद्ध-काल से पूर्व इसका आरम्भ नहीं हुआ
Read Moreनिर्लिप्तता का अर्थ है सांसारिक मायामोह से दूर रहना। यह कर्म के बन्धन से निवृत्ति भी है। गीता में एक
Read Moreसु$आङ् अधिपूर्वक इड्-अध्ययने धातु से स्वाध्याय शब्द बनता है। स्वाध्याय शब्द में सु, आ और अधि तीन उपसर्ग हैं। ‘सु’
Read Moreआरण्यक ग्रन्थ की आवश्यकता क्यों अनुभव की गई थी? ‘आरण्यक’ शब्द का अर्थ है- अरण्य में होने वाला। वन में होने
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