माली
कानन-कानन बिखरें विवश सुमन,माली को तरसे श्यामल सजल नयनसूर्योदय हो या अस्ताचल की ओर गमन,ममतामई स्पर्श को वंचित वन-उपवन वृक्ष-वल्लरियों
Read Moreबीबी आई जब से घर में, हँसी गया मैं भूलहिम्मत नहीं, किसी को भी दूँ गेंदे का फूल शादी के
Read Moreहाथों में हाथ लिए चुने थे परिजात!छुपा-छुपी, लंगड़ी, गुड्डे की बारात!पतंगें उड़ाना, वो मांझे को लपेटना!आँगन में गिरे कच्चे आम
Read Moreसूरज के तेजस घोड़े चले अंतरिक्ष के उस पार,मन में उमड़ते-घूमड़ते भाव, खोले ग्रह-नक्षत्र द्वार! परिंदों ने फैलाएं पँख, चले
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