गीतिका : एक विनम्र श्रद्धांजलि
सपूत मातृभूमि के, उठो कि माँ पुकारती । कलाम तुम चले कहाँ कि रो रही है भारती । नजर उठा
Read Moreसपूत मातृभूमि के, उठो कि माँ पुकारती । कलाम तुम चले कहाँ कि रो रही है भारती । नजर उठा
Read Moreऔर कुछ पल बाद, एक साल और कम हो जाएगा तेरे मेरे बीच की दूरियां निरंतर कम हो रही हैं
Read Moreक्या कविता आग लगा सकती है? हाँ , कविता रोते को हँसा सकती है हँसते को रुला सकती है दस्यु
Read More“उफ !! फिर ये राशन के मोटे चावल, नहीं खाने मुझे “बेटी ने कहा “मुझे भी नहीं खाने “बेटे ने
Read More(1) जीवन की आड़ी तिरछी राहों पर आगे बढ़ता चल बाधा से घबराना कैसा सोच समझ पग धरता चल जन
Read Moreदरवाजे पर दस्तक हुई. “कौन आया होगा — अभी तो सुबह भी नहीं हुई ” आँखें मलते हुए चादर हटा कर उठी. दरवाजा खोला. “अरे
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