गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 12/12/202026/12/2020 ग़ज़ल अपनी जिंदगी गुजारी है ख्बाबों के ही सायें में ख्बाबों में तो अरमानों के जाने कितने मेले हैं भुला पायेंगें Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 07/12/2020 ग़ज़ल पैसों की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है रुपये पैसों की Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 27/11/2020 ग़ज़ल किस ज़माने की बात करते हो रिश्तें निभाने की बात करते हो अहसान ज़माने का है यार मुझ पर क्यों Read More
गीत/नवगीत *मदन मोहन सक्सेना 22/11/202027/11/2020 गीत सपने सजाने लगा आजकल हूं मिलने मिलाने लगा आजकल हूं हाबी हुई शख्सियत मुझ पे उनकी खुद को भुलाने लगा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 25/10/2020 ग़ज़ल किसी के दिल में चुपके से रह लेना तो जायज है मगर आने से पहले कुछ इशारे भी किये होते Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 20/10/202023/10/2020 ग़ज़ल – ये कैसा परिवार मेरे जिस टुकड़े को दो पल की दूरी बहुत सताती थी जीवन के चौथेपन में अब ,बह सात समन्दर पार Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 16/10/202023/10/2020 ग़ज़ल वक़्त की साजिश नहीं तो और किया बोले इसे पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाये अक्सर रोशनी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 12/10/202023/10/2020 ग़ज़ल जीना अब दुश्बार हुआ अज़ब गज़ब सँसार हुआ रिश्तें नातें प्यार बफ़ा से सबको अब इन्कार हुआ बंगला ,गाड़ी ,बैंक Read More
सामाजिक *मदन मोहन सक्सेना 08/10/2020 स्वाद उम्र के एक खास पड़ाव तक तो खाने में नए-नए ट्विस्ट चाहिए होते हैं न ! जैसे साऊथ इंडियन, नार्थ Read More
गीतिका/ग़ज़ल *मदन मोहन सक्सेना 05/09/2020 ग़ज़ल हर लम्हा तन्हाई का एहसास मुझको होता है जबकि दोस्तों के बीच अपनी गुज़री जिंदगानी है क्यों अपने जिस्म में Read More