हाकलि छंद
पितृ दिवस पर प्रस्तुत है हाकलि छंद, आदणीय पिता श्री को सादर प्रणाम एवं सभी मित्रों को हर्षित बधाई, ॐ
Read More“मुक्त काव्य” दिन से दिन की बात है किसकी अपनी रात है बिना मांगे यह कैसी सौगात है इक दिन
Read More“छंदमुक्त काव्य” गुबार मन का ढ़हने लगा है नदी में द्वंद मल बहने लगा है माँझी की पतवार या पतवार
Read More“भोजपुरी गीत” चल चली वोट देवे रीति बड़ पुरानी नीति संग प्रीति नौटंकी भई कहानी……. लागता न लूह, न शरम
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