“कता/मुक्तक”
हो सके तो कर समर्पण आज अपने आप को। कर सका क्या मन प्रत्यर्पण पूछ अपने आप को। आ नहीं
Read Moreहो सके तो कर समर्पण आज अपने आप को। कर सका क्या मन प्रत्यर्पण पूछ अपने आप को। आ नहीं
Read Moreनमन करूँ प्रभु जी, पूरण हो काज शुभ, सेवक हूँ मैं आप का, शिल्प तो सिखाइये विनती है परमात्मा, पुकारती
Read Moreटकटक की आवाज ले, चलती सूई तीन मानों कहती सुन सखा, समय हुआ कब दीन समय हुआ कब दीन, रात
Read Moreसूखे तो काँटे हुए, हरे खड़े थे पेड़ अब किससे आशा रखूँ, फसल खा रहे मेंड़ फसल खा रहे मेंड़,
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