पीड़ा
पीड़ा; दिखती नहीं है, किन्तु अनुभव की जा सकती है— स्वयं को पीड़ित के स्थान पर रखकर । — महेन्द्र
Read Moreजनता, ताश के पत्ते में पड़ा गुलाम है। जिसका मतदान के अतिरिक्त कोई कार्य नहीं हैं, जब तक कि ताश
Read Moreहमने वस्त्र की नग्नता पर विचार किया, किन्तु विचार की नग्नता का क्या? जो दिन-प्रतिदिन समाज में मानवता को चुनौती
Read Moreआजकल चौराहों पर रामराज्य की चर्चा करते हुए दो-चार लोगों का मिलना स्वाभाविक है। जनसभा की बैठक में सत्ताधारी पूछता
Read Moreखुली हुई आँख के सपनों को साकार किया जाए घर से निकले हैं, तो बस घर पर इतना उपकार किया
Read Moreवीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !सकल सृष्टि आज त्राहि पुकारता | नैनों में थे खुशियाँ जिनके उन आंखों में हैं आँसू
Read Moreआज वर्तमान समय में नारी अपनी प्रतिभाओं के माध्यम से जिस प्रकार नई – नई उपलब्धियों को हासिल कर अपने
Read Moreहम जल रहे थे, तो कोई बचाने न आया | अपने महल और मकान से | उस वक़्त, वक़्त ने
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