भजन/भावगीत

कविता : वीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !

वीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !
सकल सृष्टि आज त्राहि पुकारता |

नैनों में थे खुशियाँ जिनके
उन आंखों में हैं आँसू रुदन के
वक़्त बदल रहा या बदल रहा कायदा
वीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !

मानव का मानव पर घात हो रहा है
कई किस्म के पाप एक साथ हो रहा है
निज ज़िन्दगी से भी लोग तंग आ चुके हैं
संसार में तुम्हारे न जाने क्या – क्या हो रहा है ?

अपराध, अपराधी नहीं है इस जगत में
सत्य का कोई साथी नहीं है इस जगत में
मौन होकर देखते हैं, सभी एक – दूसरे का त-माशा
वीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !

लोग घरों में से निकलने से डरते हैं
क्योंकि समाज में तरह – तरह के मुसाफ़िर चलते हैं
वक़्त, बे-वक़्त कौन किसका शिकार हो जाये
ऐ सन्देह आज मन – मन में पलते हैं |

मानवता की लाज बचा लो माँ
मानव को फिर से मानव बना दो माँ
चीर जगत की सुन लो अभिलाषा –
वीणापाणि माँ वागेश्वरी, शारदा !

— महेन्द्र कुमार मध्देशिया

महेन्द्र कुमार मद्धेशिया

छात्र; दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर पता; ग्राम - दुल्हा सुमाली, टोला - सलहन्तपुर, पोस्ट - ककरहवॉ बाजार, सिद्धार्थनगर- 272206 (उत्तर प्रदेश) सम्पर्क ; 7266021791