कविता

कोरोना

कोरोना
कोरोना !
प्रतिबिम्ब है हमारी सोच का
हमारी मानसिकता का
हमारी हठधर्मिता का
हमारी बुद्धिमता का
बुरा ना माने तो कहूँ–
हमारी उच्छृंखलता का
हमारी अकर्मण्यता का
हमारे संकीर्ण दृष्टिकोण का
हमारी लापरवाही का
हमारे खुद पर अविश्वास का
आधुनिक विज्ञान पर अश्रद्धा का
हमारी स्वार्थपरिकता का
चक्षु होते हुए भी दृष्टिहीन होने का ।
करारा व्यंग है
हमारी शिक्षा /अशिक्षा पर
हमारे ज्ञान पर
हमारे अपनों से प्रेम पर
पारस्परिकता पर
संवेदनशीलता पर ।
इस पृथ्वी दिवस पर
पृथ्वी भी रो रही है हमारी वृत्तियों पर
हर तरफ प्रकृति- दोहन
पृथ्वी , जल, वायु—प्रदूषण
क्यों न कोरोना का हो तांडव
जब कि हम ही उसके लिए
जुटाते हैं
माफिक वातावरण और सभी
सुविधाएं ।
अब भी चेत जाओ,
जब जागे तभी सबेरा
जान है तो जहान है
अपने यहां का मुखौटा छोड़
थोड़ा अनुशासन का मार्ग पकड़ें
तो साँसों का प्रवाह
लय -बद्ध होगा
जीवनदायी होगा
२४ -४-2021

डॉ. ओमप्रकाश गुप्त

वरिष्ठ सलाहकार, निवर्तमान प्राध्यापक मेडिसिन विभाग महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान सैवाग्राम, वर्धा, महाराष्ट्र, ४४२१०२ पूर्व अधिष्ठाता, और विभागाध्यक्ष, मेडिसिन हिंदी प्रकाशन-- उत्तरायण- वार्धक्य संबंधित, मराठी से अनूदित रोशनी की अनंत तलाश-- कविता संग्रह माण्डूक्योपनिषद-- हिंदी पद्यरूपांतर व्यास की विरासत-- (प्रकाश्य)-- मराठी से अनुवाद

One thought on “कोरोना

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत बढ़िया लिखा है .हम खुद ही इस के जिमेदार हैं .

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