Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्य को सद्धर्म एवं देश हित का विचार कर सभी कार्य करने चाहियें

ओ३म् हम मनुष्य कहलाते हैं। हमारी पहचान दो पैर वाले पशु के रूप में होती है। परमात्मा ने पशुओं को

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

जीवात्मा का जन्म-मरण वा आवागमन अनादि काल से चल रहा है

ओ३म् मनुष्य जन्म व मरण भोग एवं अपवर्ग की प्राप्ति के लिए प्राप्त एक सुअवसर होता है। यह अवसर सनातन,

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्वाध्याय से जीवन की उन्नति सहित अनेक रहस्यों का ज्ञान होता है

ओ३म् मनुष्य जीवन में सबसे अधिक महत्व ज्ञान का बताया जाता है और यह बात है भी सत्य। हम चेतन

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेद एवं वैदिक धर्म हमें क्यों प्रिय हैं?

ओ३म् मनुष्य को जिन मनुष्यों, पदार्थों व वस्तुओं से लाभ होता है वह उसको प्रिय होती हैं? मनुष्य भौतिक वस्तुओं

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदर्षि दयानन्द द्वारा स्थापित आर्यसमाज हमें प्रिय क्यों हैं?

ओ३म् संसार में अनेक संस्थायें एवं संगठन हैं। सब संस्थाओं एवं संगठनों के अपने अपने उद्देश्य एवं उसकी पूर्ति की

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्य को अपने लाभ के लिए ईश्वर की उपासना करनी चाहिये

ओ३म् मनुष्य मननशील प्राणी है। वह अपनी रक्षा एवं हित के कार्यों में संलग्न रहता है। अपनी रक्षा के लिए

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देवयज्ञ अग्निहोत्र का करना मनुष्य का पुनीत सर्वहितकारी कर्तव्य

ओ३म् मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मननशील होने से ही दो पाये प्राणी की मनुष्य संज्ञा है। मननशीलता का

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेद वर्णित ईश्वर की न्याय-व्यवस्था आज भी सर्वत्र प्रभावी है

ओ३म् हमारा यह संसार स्वयं नहीं बना अपितु एक सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अनादि, नित्य, न्यायकारी तथा दयालु सत्ता जिसे

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

धर्म सत्कर्तव्यों के ज्ञान व पालन और असत् कर्मों के त्याग को कहते हैं

ओ३म् धर्म के विषय में तरह तरह की बातें की जाती हैं परन्तु धर्म सत्याचरण वा सत्य कर्तव्यों के धारण

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