बाल कथा – रस्साकशी का खेल
आज पार्क में बड़ी ही चहल पहल है। रविवार का दिन जो है। अपना होमवर्क करके सभी बच्चे खेलने आएं
Read Moreआज पार्क में बड़ी ही चहल पहल है। रविवार का दिन जो है। अपना होमवर्क करके सभी बच्चे खेलने आएं
Read Moreजाने कितनी ही देर तलक, मै दुविधा में रही खड़ी थी। क्यों तुमने मुड़ कर नही देखा। शांत पड़े थे
Read Moreआम के पेड़ पर एक सुंदर सा घोंसला था और उस घोंसले में रहती थी एक छोटी सी प्यारी सी
Read Moreबुझने से पहले, अंधेरों तुमसे जी भर मै लड़ूंगा। दीप माटी का बनूंगा। दीप माटी का बनूंगा। पाँव के छाले
Read Moreरात का सफर है, मुसाफिर बेखबर न होना। है दूर अभी मंज़िल, मीठी नींद नही सोना। करने को काम कितने,
Read Moreमै गलियों चौबारों की बातें करूंगा। मै छोटे बाज़ारों की बाते करूंगा। दुल्हन की नजाकत पे तू शेर कहना, मै
Read Moreजितना हो सके हाँ दूर ही से टालिये। इस बेजुबान दिल में हसरत न पालिये।। बैठा के उसको सामने करते
Read Moreबहुत दिनों के बाद खरीदे हैं मैंने। बेच के आँखे ख्वाब खरीदे हैं मैंने। गिरवी रख के पंख उड़ाने सीखी
Read Moreसुनो सुनो मधुमक्खी रानी कहो कहाँ से आती हो। कितनी छोटी सी हो तुम और इतना शहद बनाती हो। कहाँ
Read Moreअनछुए कुछ मनछुए अहसास दबाए, कितना कुछ कहती रहीं खामोश निगाहें। टूटे हुए ख्वाबों का मलबा बिखरा पड़ा है, कितनी
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