कविता : मैं गाँव हूँ
हां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों में जीता हूं मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं सांझे है गम सांझी
Read Moreहां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों में जीता हूं मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं सांझे है गम सांझी
Read Moreचेहरे से हटा ले जुल्फों को जरा चांद जमीं पर आने दो मैं जुगनू बन कर चमकूंगा जरा चांद जमीं
Read Moreदिल को फिर से चाहतों का तकाजा हुआ है आंख के तट पे आंसुओं का जनाजा हुआ है काश लम्हे
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