कविता

कविता : मैं गाँव हूँ

हां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों में जीता हूं
मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं

सांझे है गम सांझी है खुशीयां यहां
आज भी मनती मिल कर होली
और सांझी दिवालीयां यहां
एक का भार और सौ के कंधे
यहां पर बेशर्मी और फैशन में
इनसान नहीं होते अंधे
मिल बैठते है यार चौक चौबारे
बांट कर खा लेते दुश्मन और प्यारे
मैं अपनी अपनी सब से कहता हूं

हां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों में जीता हूं
मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं

यहां माँ, माँ है मम्मीयां नहीं
रिश्तों में प्यार की गर्मियां है
यहां बापू , बापू है डेड नहीं
मुहब्बत जिंदा है सूखा पेड़ नहीं
खेत खलिहान अन्न दे देते है
दूध दही यहां पशुधन दे देते हैं
सूरज बिजली की पूर्ति करता
चुल्हे की जलावन खेत और
दरिया प्यास की आपूर्ति दे देते है
मैं परबस किसी का नहीं रहता हूं

हां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों में जीता हूं
मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं

विध्यालय थोड़े दूर है मगर..
फिर भी ग्यान से सब भरपूर है..
चिकित्सा अलबता देर से मिलती है
मगर बीमारीयां यहां कम ही पलती है
नां हृदयाघात नां मधुमेह
नां रक्तचाप नां कमजोर देह
हृष्टपुष्ट मेरे युवक है कामकाजी नारी
उम्रदराज स्वस्थ,स्वच्छ आबोहवा
नां ही कोई जानलेवा बीमारी
अपनी ही मौज मे मैं चलता हूं

हां मैं गांव हूं थोड़ा अभावों.में जीता हूं
मगर फिर भी सबसे हंसता मिलता हूं

नन्द सारस्वत–बेंगलुरु

नन्द सारस्वत

नन्द सारस्वत 27/7/1961 स्नातकोत्तर ( व्यवसाय प्रबंधन ) राजस्थान विश्वलविध्यालय पता- # 1 गोदावरी विला मिनाक्षीनगर बैंगलुरु-79 व्हाटस एप्प-8880602860 email -sarswatnls@gmail.com