अनुभूति
टूटी तन्द्रा मन जाग उठाउपवन ऐसा था महक रहा। मैं छोड़ सभी कुछ दौड़ पड़ीरह गयी अचम्भित खड़ी खड़ी। पादप
Read Moreजब भी एकाकी होती हूँ कल्पनाओं को देती हूँ उड़ान, मन को उतारती हूँ गहन सागर में, पंख फैला विचरती
Read Moreसूर्य के आगमन सदृश लोक में आगमन का आनन्द दिवस के चढ़ते ताप सदृश संघर्षपूर्ण जीवन में भी जीने की
Read Moreखुशनुमा जीवन का एहसास दिलाते वो पिरामिड आकार के शंकुधारी पेड़ों जैसे तुम, अधरची मेहंदी सी अनोखी सुगंध सहित लाली
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