गीत/नवगीत

भोले की होली मसाने में

भोले की होली मसाने में, तन पर भस्म रमाने में। शिव शंकर रे जटा बांध, लगे खुद को सजाने में।। खेल रहे शिव गौरा संग खिल रहा गौरी का अंग-अंग, डम डम डम डम डमरू बाजे भक्तन सारे हिल-मिल नाचे, पटक-पटक माटी साने में, होली के खेल खिलाने में। सब लगे मसान सजाने में, भोले […]

कविता

मुझे अच्छा लगता है

मेरे प्रियतम ! तुम्हारे प्यार से खुद को सजाना मुझे अच्छा लगता है, सुहाग की निशानियों से अपना प्यार जतलाना मुझे अच्छा लगता है। तुम्हारी समृद्धि के लिए भवों के बीच कुमकुम की बिंदी लगाना मुझे अच्छा लगता है। तुम्हारे प्यार को दर्शाती हाथों में मेहंदी का गहरा लाल रंग रचाना मुझे अच्छा लगता है। […]

लघुकथा

दण्ड

पूरा मोहल्ला उनको पंडितजी कहता था, सब उनके पास जाकर सलाह लेते, उनको मान सम्मान देते। उनका रुतबा भी बहुत था। सीमा और उसका परिवार जब उस मोहल्ले में रहने गए तो अड़ोस पड़ोस के लोगों से पंडितजी के बारे में पता चला कि अभी 6 महीने पहले ही पंडितजी इस मोहल्ले में रहने आये […]

भाषा-साहित्य

इंसान को अधिक कौन संवारता है, आलोचना या समालोचना

हर व्यक्ति व रचनाकार में गुण व दोष स्वाभाविक रूप से होते हैं और जहाँ एक ओर दोष जानना आवश्यक है वहीं दूसरी ओर गुण जानना भी व्यक्ति या रचनाकार के लिए आवश्यक है। ‘समालोचना’ अर्थात् सम्यक रूप से देखना और जब सम्यक रूप से हम देखते हैं, सम दृष्टि रखते हैं तो दोष के […]

बाल कविता

कठपुतली

पापा कहते करो पढाई मिलेगी तुमको बहुत बड़ाई। मम्मी कहतीं सबकी सुन भर लो खुद में अच्छे गुण। भैया  कहते अभ्यास करो खेल जगत में नाम करो। दीदी को है संगीत पसंद बाकी सब तुम कर दो बंद। कोई कहता कंप्यूटर सीखो कोई कहता नयी चीज़ें सीखो। हम छोटे भोले से बच्चे मासूम बहुत, हैं […]

कविता

किन्नर

हाँ, मैं हूँ किन्नर होश संभाला स्वयं को पाया किन्नरों के बीच। नहीं जानता कैसी होती माँ कैसा होता पिता क्या होती ममता, बड़ा हुआ तब जाना मैंने दिया जिसने जन्म किया उसी ने बेघर। पहन लेता हूँ चूड़ी, बिन्दी, गजरा, पायल ओढ़ लेता हूँ चुनरी किन्तु खुद की देह देख समझ नहीं पाता मैं […]

कविता

माँ तुम बड़ी अजीब थी

जब मैं छोटी थी मुझे परियों की सी फ्रॉक पहना और बालों में रिबन लगा आंखों में काजल लगा प्यार से निहारती थी, और इस डर से कि कहीं नज़र न लग जाये मुझे काला टीका लगा चूम लेती थी उससे भी तुझे तसल्ली नहीं होती थी नए नए प्रयोग कर मेरी नज़र उतारती थी, […]

कविता

अपूर्ण को पूर्ण

नहीं चाह मुझे रत्न जड़ित आभूषणों की, नहीं कामना मुझे सलमे सितारों से सजी चंदेरी चुनर की, नहीं ईप्सा मुझे रक्त अधरों की, नहीं अभिलाषा मुझे संगमरमर से बने महलों की। मैं पैबंद लगी सूती धोती में रेशमी धागे से कसीदे काढ़ संवार लेती हूँ वसन, प्रियतम के प्रेम सिंदूर से और लाज का गहना […]

कविता

चाँद जब अपनी छत पर होगा

शांत पड़ी ज़िन्दगी में हलचल मचाती सी तुम्हारी याद ज्यों शांत झील में गिरता जलप्रपात। जल से छाई ज्यों चहुँ और हरियाली वैसे ही तुम्हारी याद प्रसूनों की महक सदृश जीवन में हरीतिमा लाई। आज नहीं हो तुम पर तुम्हारी याद गिरते झरने की तरह मन में कलकल करती है, हसरतों को जगाती है अपेक्षाओं […]

कविता

आईना

हाथ को आईना बना चल दी मैं कलयुग से सतयुग की ओर, इस आईने में कुछ अतीत की तस्वीरें उभरीं– सत्य मुख पर आवरण डाल कोने में दुबक कर रो रहा है, उसकी दयनीय स्थिति देख झूठ खिलखिला रहा है, “मैं जीत गया” यह सोच इतरा रहा है, सत्य ने धीरे से आवरण हटाया और […]