लघुकथा- अर्थहीन पुरस्कार
संजीव और निगम दोनों स्टेट बैंक में काम करते थे। दोनों में मित्रता के साथ-साथ थोड़ी बहुत ईर्ष्या भी थी।
Read Moreसंजीव और निगम दोनों स्टेट बैंक में काम करते थे। दोनों में मित्रता के साथ-साथ थोड़ी बहुत ईर्ष्या भी थी।
Read Moreहर तरफ विवादों की गली है रिश्तों में दीमक लगने लगी है बिखरते रिश्ते उड़ता धुआं जलने की महक आने
Read Moreइतनी शक्ति हमें देना दाता मनाएं दिवाली हम प्रेम से। देना सबको ही तुम ज्ञानधन सोए न कोई भूखे पेट
Read Moreशरद पूर्णिमा की शरद रात में चमक चांदनी छिटकी हुई थी । कनक किरणों के मोह जाल में वियोगी वसुधा
Read Moreहाँ, मैं अधूरी देह में लिपटी एक आत्मा हूँ पर, तुम तो संपूर्ण काया रखकर भी अधूरे लगते हो मुझे
Read Moreहाँ, मैं अधूरी देह में लिपटी एक आत्मा हूँ पर, तुम तो संपूर्ण काया रखकर भी अधूरे लगते हो मुझे
Read Moreचले आ रहे समूहों में तुम लिए बूंदों के हथियार कुछ भूरे कुछ काले कुछ मटमैले से सियार कौन देश
Read Moreअब न होगी रात अंधेरी हरेक पग पर उजाला होगा। इस धरती के दिनमान से जीवन सबका संवरा होगा। जलेगी
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