संगठित हो दीपावली मनाएँ
इतनी शक्ति हमें देना दाता मनाएं दिवाली हम प्रेम से। देना सबको ही तुम ज्ञानधन सोए न कोई भूखे पेट
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Read Moreशरद पूर्णिमा की शरद रात में चमक चांदनी छिटकी हुई थी । कनक किरणों के मोह जाल में वियोगी वसुधा
Read Moreहाँ, मैं अधूरी देह में लिपटी एक आत्मा हूँ पर, तुम तो संपूर्ण काया रखकर भी अधूरे लगते हो मुझे
Read Moreहाँ, मैं अधूरी देह में लिपटी एक आत्मा हूँ पर, तुम तो संपूर्ण काया रखकर भी अधूरे लगते हो मुझे
Read Moreचले आ रहे समूहों में तुम लिए बूंदों के हथियार कुछ भूरे कुछ काले कुछ मटमैले से सियार कौन देश
Read Moreअब न होगी रात अंधेरी हरेक पग पर उजाला होगा। इस धरती के दिनमान से जीवन सबका संवरा होगा। जलेगी
Read Moreदेखकर सूखे पत्ते की सूखी उभरी नसों को याद आ गई बूढ़ी माँ छोड़ आया था जिसे नितांत अकेला सूने
Read Moreसब जगह काट-छांट अकेला होता जीवन छोटे होते परिवार खुशियों को लगता ग्रहण हो गया सब तरफ बोनसाई जीवन। जड़ों
Read Moreपर्व यह रक्षा सूत्र का कहलाता रक्षा बंधन कोमल पवित्र पावन सा ये रिश्ता बहन भाई का बाँधकर रक्षा सूत्र
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