मैं लिफ्ट नहीं हूँ
तुम समझते क्यों नहीं मुझ में भी जान है कहा न- सच में प्राण है मुझमें दर्द भी होता है
Read Moreतुम समझते क्यों नहीं मुझ में भी जान है कहा न- सच में प्राण है मुझमें दर्द भी होता है
Read Moreनासमझ मन नकारात्मक सोच में डूबा जंगल की लताओं सा उलझा रहता है ढूंढता उजाले को अंधेरे रास्ते पर चल
Read Moreसड़क के किनारे फुटपाथ पर पड़े कूढ़े के ढेर के पास बैठा जूठन टटोलता कड़कड़ाती ठंड में मात्र निजी अंग
Read Moreनव वर्ष का नव प्रभात है खुशियाँ आने की आहट है। भारतीयों के तन मन में माँ की रक्षा बड़ी
Read Moreफिर आ गया इक्कीसवीं सदी का दर्द में डूबा नव वर्ष वृक्षों पर उमंग नहीं अंतस में छिपा है बिछड़े
Read Moreहम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें। डरे डूबे हुओं का किनारा बनें। नर से नारायण बनकर हम सेवा करें।
Read Moreवह चटकती है कांच सी खिलती कचनार सी टूटती है दीवार सी राह में नारी के विकार हैं,व्यवधान हैं दुविधाएँ
Read Moreसच बतलाना तुम सागर तुमसे मेरा क्या नाता है। पास देख कर तुम्हें मगर प्रेम उमड़ घुमड़ आता है। समझा
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