मैं जल-कल और हल हूँ
मैं जल-कल और हल हूँ (1) धरती का अमोल रत्न हूँ मैं जल-कल और हल हूँ। चलता जीवन मेरे सहारे
Read Moreमैं जल-कल और हल हूँ (1) धरती का अमोल रत्न हूँ मैं जल-कल और हल हूँ। चलता जीवन मेरे सहारे
Read Moreवसंत लेकर आया शोर वन वन नाच रहे हैं मोर। नीरव स्वच्छ आकाश में होड़ लगी है चारों ओर। पीली
Read Moreमेरे घर के चारों तरफ पेड़-पौधों की हरियाली व पक्षियों के बसेरे हैं। भोर पांच बजे छत पर प्रकृति की
Read Moreलगी भीड़ गद्दारों की मेरे भारत देश में। छिपा यहाँ हर कोई न जाने किस भेष में। खाते हैं जिस
Read Moreपंखुड़ी गुलाब की झूल रही डाल से। जुड़ने को मचल रही अपने परिवार से। ढुलका दिया हवा ने पत्तों के
Read Moreउस पार सरहद के चली उड़ती पवन पंछियों संग उस पार सरहद के चली। न रोके कोई न टोके कोई
Read Moreवीराने से एक जंगल में कई सौ साल पुराना बरगद का एक वृक्ष था। उसकी लम्बी-लम्बी लटाएं धरती को छू
Read Moreशब्द गरल पीते ही अश्रु समन्दर बह जाता है। खारा जल कपोल पर ढुलके मन आघात दे जाता है। वाणी
Read Moreमत लगने दो हौसलों में जंग ये बनाते हैं हमें जीवंत। समय-समय पर धार इसमें लगाते रहो। प्रयोग कर इसका
Read Moreकुंती के विवाह को चार साल हो चुके थे, पर उसके कोई संतान न थी। उसके ससुराल के लोग उससे
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