तुम्हें अगर है जीना
तुम्हें अगर है जीना भरपूर जीना, तो अंहकार को तोड़ दो कागज को मोड़ दो नदी में नाव छोड़ दो।
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Read Moreक्या लिखूँ कैसे लिखूँ किस पर लिखूँ ? नारी के चीत्कार पर बच्चियों के बलात्कार पर वृद्धों के दुत्कार पर,
Read Moreमानव के अंदर स्थित आत्मा परमात्मा का ही रूप है यह सर्व विदित है। भगवान ने जीव को अपनी ही
Read Moreहै कण-कण में भगवान तू है अबोध अज्ञान तू झाँक हृदय के अंदर है मिल जाएगा ज्ञान है सारी अद्भुत
Read Moreउम्र पचास के ऊपर की बड़ी हसीन होती है आधी तो तो कट चुकी चौथाई बाकी होती है। जीवन जीने
Read Moreशरद पूर्णिमा की शरद रात थी चमक चांदनी छिटकी हुई थी । कनक किरणों के मोह जाल में वियोगी वसुधा
Read Moreमैं कारक जीवन उत्पत्ति का विद्युत का विस्तृत स्रोत हूँ । जलधि, नीरधि वारिधि बनकर मानव संस्कृति का मैं देव
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