शांति
जगती के बहु कष्ट कराल।प्रखर अग्नि सम ये विकराल।चहुँदिशि छाया है आतंक।वसुधा का यह घोर कलंक।नहीं प्रेम की शीतल छाँव।दहक
Read Moreयह काल निरन्तर चलता है, रुकता न कभी इसका प्रवाह। इस कालसिन्धु की धारा में, बहता जाता है जग अथाह।
Read Moreजो अटल खंभ-सा खड़ा रहे, विपदा के झंझावातों में। मन में साहस की ज्योति लिए, जगता संकट की रातों में।
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