कविता

जीवन चलता ही रहता है

यह काल निरन्तर चलता है,
रुकता न कभी इसका प्रवाह।
इस कालसिन्धु की धारा में,
बहता जाता है जग अथाह।
शतबार यहाँ उठती लहरें,
पल में यह ज्वार उतरता है।
जीवन चलता ही रहता है।

जब चलती है आँधी प्रचंड,
शत विटप धराशायी होते।
बढ़ता जाता है समय,विपिन में,
वृक्ष नए फिर उग आते।
पतझड़ के जाते ही वन में,
नव खगदल कलरव करता है।
जीवन चलता ही रहता है।

नाना कर्मों में लीन मनुज,
जीवन-संग्राम रचाता है।
कुछ कर्म सफल हो जाते हैं,
कुछ में वह हानि उठाता है।
सौ बार उखड़ती हैं साँसें,
उत्साह नया फिर चढ़ता है।
जीवन चलता ही रहता है।

जब मनुज धरा पर आता है,
संबंधों से घिर जाता है।
कुछ लोग बिछड़ जाते पथ में,
कुछ से गहराता नाता है।
अगणित रिश्तों का ये उपवन,
खिलता है,कभी उजड़ता है।
जीवन चलता ही रहता है।

अनुराग कहीं पर बढ़ता है,
कुछ लोग हृदय से जुड़ जाते।
अपनत्व कहीं खंडित होता,
कुछ लोग पराए हो जाते।
यह खेल घृणा और मैत्री का,
जग में विधि रचता रहता है।
जीवन चलता ही रहता है।

विपदा के घेरे में मानव,
नयनों से नीर बहाता है।
सुख में अधरों पर हास्य लिए,
नित-नित खिलता ही जाता है।
सुख-दुख का दुर्गम द्वंद्व-जाल,

प्रतिक्षण नव रूप बदलता है।

जीवन चलता ही रहता है।

माया के वशीभूत होकर,
प्रभु को तुम क्यों बिसराते हो?
क्षणभंगुर सुख की आशा में,
तुम अपना समय गँवाते हो।
हरिनाम-सुधारस पान करो,
इसमें ही सबकुछ बसता है।
जीवन चलता ही रहता है।

–निशेश अशोक वर्धन

उपनाम–निशेश दुबे

निशेश दुबे

रचनाकार--निशेश अशोक वर्धन उपनाम--निशेश दुबे ग्राम+पोस्ट--देवकुली थाना--ब्रह्मपुर जिला--बक्सर(बिहार) पिन कोड--802112 दूरभाष सं--8084440519