ग़ज़ल
कैसा दिखता है अंतरालों मेंउम्र के साथ श्वेत बालों मेंढूंढते हम रहे जवाब सदापर भटकते रहे सवालों मेंकैसे हम अनुष्ठान
Read Moreतुम्हारी बेरुखी फिर मुझको न रुसवा कर देफिर न एक बार मुझे ख़ुद में अकेला कर दे मैं जानता हूं
Read Moreदर्द आशोब के मंज़र भी हमने देखे हैंआग में जलते हुए घर भी हमने देखे हैंसाथ रहते हुए मासूम –
Read Moreकुछ खोकर कुछ पाकर जाना, जीवन क्या हैदु:ख से हाथ मिलाकर जाना, जीवन क्या है चलते – चलते शाम हो
Read Moreमन का मौसम ठीक नहीं तो होठों पर भी गीत नहीं।अरसा हुआ हृदय के पथ से गुजरा कोई मीत नहीं।
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