गीतिका/ग़ज़ल *ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर" 09/08/2018 चारदीवारी ढूंढता हूं इंसां को ईंट गारों की चारदीवारी में। उगते है केक्टस अब के गुलाब की क्यारी में। सोचा था Read More
गीतिका/ग़ज़ल *ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर" 05/08/2018 मौसम फिर ढूंढ लाओ वही गुलमोहर वाला मौसम। हदे निगाह हरे भरे शजर वाला मौसम। नदी की रेत में ढूंढते थे Read More
गीतिका/ग़ज़ल *ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर" 05/08/2018 तूफ़ान के थपेड़े मै अपने गांव में रहा कि शहर में रहा। जज्बे ए इंसानियत मेरे जिगर में रहा। वो साहिबे मसनद कब Read More