गज़ल – सूखा पत्ता
कभी दश्त में हूँ, कभी राहे गुलजार में हूँ। सूखा पत्ता हूँ, इन हवाओं के ईख्त्यार में हूँ। ये न
Read Moreकभी दश्त में हूँ, कभी राहे गुलजार में हूँ। सूखा पत्ता हूँ, इन हवाओं के ईख्त्यार में हूँ। ये न
Read Moreजब न ढले दर्द भरी दुपहरी, तुम चले आना। जब मुस्कुराए संध्या सुंदरी, तुम चले आना। राह तकते तकते शाम
Read Moreन आगे न पीछे, चलिए, वक्त के साथ साथ। दोस्तों खुद को बदलिए, वक्त के साथ साथ। कभी कभी जीत
Read Moreमै अपने गांव में रहा कि शहर में रहा। जज्बे ए इंसानियत मेरे जिगर में रहा। वो साहिबे मसनद कब
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