” धूप के टुकड़े “
पास से देखो तनिक अब, ताल का मन। सत्य दिखलाने से देखो डर रहे दर्पन। कंकड़ों के नाम से ही
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Read Moreहर बार अधूरे संवादों में यूं ही छोड़ न जाओ तुम। गीत अधूरे रह जाएंगे, पल भर और ठहर जाओ
Read Moreरमुआ का जीवन ही क्यों फिर पूस की रात हुआ। चेहरे की रेखाओं ने फिर मन को आज छुआ। दिन भर खटकर हुई
Read Moreफीकी हुई है रोशनाई गुम हुए अक्षर। बात मन की कहें किससे, उग रहे पत्थर। दहशत बढ़ी इतनी कि लगते
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