गीत/नवगीत

” सावन बनकर आओ तुम “

हर बार अधूरे संवादों में
यूं ही छोड़ न जाओ तुम।
गीत अधूरे रह जाएंगे,
पल भर और ठहर जाओ तुम।
झील गुलाबी नेह तुम्हारा
फैला है हर कण- कण में।
नील कमल कहिं खिल नहिं जाए,
मन के इस मधुवन में।
धूप बनो खिड़की से आकर,
छू- छू कर छिप जाओ तुम।
स्वप्न सदा लगते हैं मुझको
उन्मुक्त हुए कुछ छंदों से।
वहक- वहक कर मौन हुए हैं,
आशा के अनुबंधों से।
सौरभ बन स्पर्शित करके,
स्वांसो में घुल जाओ तुम।
शब्द मौन क्यों हो जाते हैं
अर्थ अधूरे लगते क्यों?
चुप्पी की परिभाषा बनकर,
प्रश्न चिन्ह से तकते क्यों?
नयन कुंवारे रह जाएंगे,
सावन बनकर आओ तुम।
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@ पंकज मिश्र ‘अटल’
     बरपेटा, (असम )

पंकज मिश्र 'अटल'

जन्म- 25 जून 1967 स्थाई निवास- शाहजहांपुर ( उत्तर प्रदेश) लेखन विधाएं- अतुकान्त कविता, नवगीत,बाल-साहित्य, समीक्षात्मक लेख,साक्षात्कार। प्रकाशन- देश के विभिन्न क्षेत्रों से प्रकाशित हो रही पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, ई-पत्रिकाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन जारी है। इसके अतिरिक्त विभिन्न समन्वित संकलनों में भी रचनाओं का प्रकाशन। प्रसारण- देश के विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों पर रचना पाठ और प्रसारण। प्रकाशित कृतियां- अब तक चार पुस्तकें प्रकाशित- 1. चेहरों के पार भी ( लंबी कविता,1990) 2. नए समर के लिए ( कविता,2001) 3. बोलना सख्त मना है ( नवगीत,2016) 4. साक्षात्कार:संभावना और यथार्थ (पूर्वोत्तर के हिंदी रचना धर्मियों से साक्षात्कार,2020) संपादन- "आवाज़" फोल्डर अनियतकालिक और अव्यावसायिक तौर पर संपादन और प्रकाशन। सम्प्रति- जवाहर नवोदय विद्यालय सरभोग, बरपेटा आसाम में अध्यापन कार्य। मोबाइल नंबर- 7905903204 ईमेल- pankajmisraatal@gmail.com