मौजूदगी
न जाने कितनों दिनों से बारिश का कहर, बाढ़ का पानी अंदर बाहर बाढ़ ! तुम्हारा भीतर से यूँ बह
Read Moreमैं हमेशा निर्बंध रहने का आदि था । मुक्त उड़ान ही मेरी फितरत रही, तुमसे मिलने के बाद प्यार की
Read More“अरे जोशीभाई, सुनिए तो सही !” मैंने बगल में बैठे साथी कर्मचारी जनकभाई के सामने प्रश्नार्थ सूचक दृष्टि से देखा
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