कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 महक सरसराती ठंडी हवा खेतों की मचान पर बैठकर रात में तारे गिनना सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से उठना कुछ यूं Read More
गीतिका/ग़ज़ल प्रवीण माटी 16/08/2017 पहरा मेरे आस पास अभी रंजिशों का पहरा है किसको सुनाऊं हाल ए दिल जो खड़ा मेरे पास वो बहरा है Read More
कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 अंकुर अचेतना से निकलकर भविष्य की ओर झाँकती हुई नवस्फुटित कोंपलें जीवन की सार्थकता को परिभाषित कर रही है नर होकर Read More
कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 सीढ़ी चलो आज एक सीढ़ी लगाते हैं आसमान पर ये चमकते धमकते तारे हैं इन को लाना है नीचे अपनी झोपड़ी Read More
कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 शिक्षा शिक्षा के बिना यह आजादी अधूरी है जब देखता हूं फुटपाथ पर सोचो कहां यह पूरी है बना लो जश्न Read More
कविता प्रवीण माटी 16/08/2017 मेरी कविता मेरी कविता चीख है हकीकत की किसी का गुणगान नहीं अबोल पीड़ा है माटी की किसी पार्टी के दरवाजे की Read More
राजनीति प्रवीण माटी 16/07/201717/07/2017 सोच कितना अच्छा होता जब 130 करोड़ लोगों की आवाज एक स्वर में आती, जिससे कि सरकार भी तैयार हो जाती Read More
कविता प्रवीण माटी 16/07/201717/07/2017 नहीं कदम देख रहे हैं ,हाल रास्तों का दिल रिश्तो का ख्याल करता है माना अनजान शख्स था तेरे शहर में Read More
कविता प्रवीण माटी 16/07/201716/07/2017 समाज चोट लगी है उंगली में थोड़ा सा खून भी निकला है मगर क्या बात है अब दर्द का एहसास नहीं Read More
कविता प्रवीण माटी 21/06/2017 पिता #पिता को समर्पित एक कविता #पिता करता है काम बहुत उसको नहीं मिलता आराम बहुत निशब्द पसीने में बहता रहता Read More