कविता
वो जो अपने थे पराये हो गए प्यार में कसमें,वादें,जाए हो गए इश्क़ भरपूर किया था। नींदों को भी खुद
Read Moreहजारों सालों पहले आएं हमारी भूमि पर वे असलों से लैस होकर मंडराएं हमारे खेतों, घरों, मैदानों और पहाड़ों पर।
Read Moreदहकती धरती को देखकर, लाशों के ढेर की गिनती करते रो रहे है, राम और रहीम कल अचानक बवाल उठा,
Read Moreआखिर-क्या-मजबूरी-थी? तेरे इश्क की आरजू-ए-उल्फ़त में, दिल की दिलकशी में बेदर्दी जरूरी थी! आखरी तेरी क्या मजबूरी थी? मदहोशी तेरी
Read Moreदेश की आन ,बान और शान हूँ, हाँ! मैं किसान हूँ! चीर कर सीना धरती का, महकती फसल का सम्मान
Read Moreजमाने की हवाओ से टूट चुके है वे पेड़, जो कभी तूफानों के तेवर गिरा दिया करते थे! मानवीय सवेंदनाओ
Read Moreअपने अरमानो का गला घोंटकर , आजकल मैं छुपके से रौ रहा हूँ, शायद मैं अब बड़ा हो रहा हूँ!
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