गीत/नवगीत

गीत-आखिर-क्या-मजबूरी-थी?

आखिर-क्या-मजबूरी-थी?
तेरे इश्क की आरजू-ए-उल्फ़त में,
दिल की दिलकशी में बेदर्दी जरूरी थी!
आखरी तेरी क्या मजबूरी थी?
मदहोशी तेरी मुहोब्बत की,
आँखों के रस्ते बहनी भी जरूरी थी,
आखिर तेरी क्या मजबूरी थी?
हद से गुजर चुके थे हम,
तुम पर हर लम्हा लिख चुके थे हम,
शायद कहानी मेरे इश्क की अधूरी थी!
आखिर तेरी क्या मजबूरी थी?
इबादतें करके हम थक गए,
मन्नतो की हर पुकार में चाहत सिर्फ तुम्हारी थी,
आखिर क्या मजबूरी थी?
यूँ बिच सफर में हमे छोड़कर चले गए,
इतने पास रहकर भी कितनी दुरी थी!
आखिर तेरी क्या मजबरी थी?
— पवन अनाम

पवन अनाम

नाम: पवन कुमार सिहाग (पवन अनाम) व्यवसाय: अध्यनरत (बी ए प्रथम वर्ष) जन्मदिनांक: 3 जुलाई 1999 शौक: कविता ,कहानी लेखन ,हिंदी एवं राजस्थानी राजस्थानी कहानी 'हिण कुण है' एक मात्र प्रकाशित लघुकथा ! शागिर्द हूँ! व्हाट्सएप्प नंबर 9549236320