“क्षितिज के छोर तक” : धरा को महकाती साहित्यिक वल्लरियाँ
अकाट्य सत्य है कि साहित्य की आदि विधा छान्दस काव्य है। सर्वप्रथम छंद से ही काव्य प्रारम्भ हुआ इसलिये गीत
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Read Moreसनातन संस्कृति में अधिकांश परम्पराओं का वैज्ञानिक आधार रहा है और समाज-हित में पर्व तथा दैनं-दिनं के क्रिया-कलापों की बुनावट
Read Moreदेखें तो समस्याएं ही समस्याएं हैं किंतु मूल कारण एक ही समझ आता है कि भारत के नागरिक अपनी मूल
Read Moreजिन कवियों ने हिंदी कविता को छायावाद की कुहेलिका से बाहर निकाल कर उसे प्रसन्न आलोक के देश में पहुँचाया,
Read Moreअंतस् की 61वीं गोष्ठी अत्युत्तम रही| संस्था की अध्यक्षा डॉ. पूनम माटिया के संयोजन-संचालन में 27 अगस्त को अखिल भारतीय
Read Moreकहानी, कविता, ग़ज़ल, नाटक, दोहावली, गीत, लेख, निबंध को एक सुदृढ़ धरातल प्रदान कर उसे प्रचुर समृद्धि के व्योम पर
Read Moreअंतस् की 58वीं काव्य-गोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रसिद्ध कवि रसिक गुप्ता ने अंतस् के प्रयासों की सराहना करते
Read Moreमस्ती के माहौल में छलकीं ख़ुशियाँ थीं चहुँ ओर, रंग लगा एक-दूजे को, भागम-भाग थी हर छोर। चरण-स्पर्श को झुकी
Read Moreवो चश्मा ही और था शायद जो गाँव की कच्ची-पक्की, संकरी गलियों में बसे घरों के भीतर बसे इंसानों और
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